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कोडईकनाल टॉवर टनल टेलीस्कोप से सौर रहस्यों की गहन जांच

ऑनलाइन डेस्क, 23 अगस्त 2024: कोडईकनाल टॉवर टनल टेलीस्कोप के डेटा का उपयोग करते हुए सौर मंडल की विभिन्न परतों में चुंबकीय क्षेत्र के अध्ययन से सूर्य के रहस्यों की गहराई से जांच करने के एक नये रास्ते का पता चला है। सौर मंडल, चुंबकीय क्षेत्रों के माध्यम से आपस में जुड़ी विभिन्न परतों से बना है। चुंबकीय क्षेत्र ऊर्जा और पुंज को आंतरिक परतों से बाहरी परतों तक स्थानांतरित करने में एक वाहक का काम करता है, जिसे सामान्यतः ‘‘कोरोनल हीटिंग समस्या’’ के तौर पर जाना जाता है, और यह सौर पवन का प्रमुख कारक भी है। इन प्रक्रियाओं के पीछे की भौतिक प्रणाली को समझने के लिये सौर मंडल की विभिन्न ऊंचाइयों पर चुंबकीय क्षेत्रों को मापना महत्वपूर्ण है। इसमें चुंबकीय क्षेत्र की ताकत का अनुमान पूर्ण धुव्रीकरण की अवस्था में सूर्य के चारों तरफ स्पेक्ट्रल लाइन की तीव्रता का सटीक मापन करके लगाया जा सकता है। इसके साथ विभिन्न दूरी की प्रकाश तरंगों के ध्रुवीकरण की माप वाली बहुरेखीय स्पेक्ट्रोपोलरिमेट्री एक अवलोकन तकनीक है जो कि सौर मंडल की विभिन्न परतों में चुंबकीय क्षेत्र को कब्जे में कर लेती है। हाल के अध्ययनों में सौर लपटों के दौरान सूर्यबिंदुओं, अम्ब्रल फ्लैश और क्रोमोस्फेरिक भिन्नताओं की चुंबकीय अवसंरचना ब्यौरे की तकनीकी क्षमताओं का प्रदर्शन किया गया है।

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के स्वायत्तशासी संस्थान, भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान के खगोल विज्ञानियों द्वारा किये गये एक अध्ययन में कोडईकनाल टॉवर टनल टेलीस्कोप से हाइड्रोजन-एल्फा और कैल्शियम ।।-8662 ए-लाइनों में एक साथ अवलोकन करते हुये कई गहरी छायाओं और एक उपछाया सहित जटिल विशेषताओं वाले सक्रिय क्षेत्र (सनस्पॉट) का परीक्षण किया।

भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान द्वारा संचालित कोडईकोनाल सौर वेधशाला (कोसो) को 1909 के एवरशेड प्रभाव की खोज के लिए जाना जाता है। इस अध्ययन में सौर मंडल की विभिन्न ऊंचाइयों पर चुंबकीय क्षेत्रों की अलग-अलग परतों का पता लगाने के लिए एक साथ प्राप्त कई वर्णक्रमीय रेखाओं, विशेष रूप से हाइड्रोजन-अल्फा लाइन, 6562.8 एंगस्ट्राम (ए) के डेटा का उपयोग किया गया, जिसे कोडईकनाल सौर वेधशाला के टनल टेलीस्कोप से लिया गया और जिसका संचालन आईआईए द्वारा किया जाता है।

टनल टेलीस्कोप में स्थापित तीन-दर्पण में प्राथमिक दर्पण (एम1) सूर्य पर नजर रखता है। द्वितीयक दर्पण (एम2) सूये की रोशनी को नीचे की तरफ पुनःप्रेषित करता है और तृतीयक दर्पण (एम3) किरणों को क्षैतिज के समानांतर लाता है। इस तरह की सुविधाएं जहां प्राथमिक दर्पण जो आकाश में गतिमान एक वस्तु पर नजर रखते हुये घुमता है, यहां यह वस्तु, सूर्य है, जिसे कोयलोस्टेट कहा जाता है। एक एक्रोमेटिक डबलट (38 सेंटीमीटर, अपर्चर, एफ/96) सूर्य की छवि को 5.5 आर्कसेक प्रति मिमी की छवि पैमाने के साथ 36 मीटर दूरी पर फोकस करता है। वर्णक्रमीय रेखाओं में क्रोमोस्फेरिक चुंबकीय क्षेत्र को आमतौर पर Calcium II 8542 Å and Helium I 10830 Å line का उपयोग करते हुये अनुमानित किया जाता है। हालांकि, इन नैदानिक जांचों की कुछ सीमायें हैं, जो कि समूचे विभिन्न सौर रूपों में उनकी उपयोगिता को सीमित करता है। आईआईए में पीएचडी के छात्र और रिपोर्ट के प्रमुख लेखक हर्ष माथुर ने कहा है, ‘‘ Hα line, हालांकि, क्रोमोस्फेरिक चुंबकीय क्षेत्र में परिणाम के मामले में एक महत्वपूर्ण जांच हो सकतीं हैं, क्योंकि यह स्थानीय तापमान के उतार-चढ़ाव में कम संवेदनशील होता है। इससे हमें तापमान में अचानक उतार-चढ़ाव की घटनाओं में क्रोमोस्फेरिक चुंबकीय क्षेत्र की जांच की सुविधा मिलती है, जैसे कि दमकते हुये सक्रिय क्षेत्र में।’’

द एस्ट्रोफिजिकल जर्नल, में प्रकाशन के लिए स्वीकृत अध्ययन, इन एक साथ किये गये अवलोकनों के माध्यम से लाइन-आफ-साइट (एलओएस) चुंबकीय क्षेत्र का एक व्यापक विश्लेषण प्रदान करता है। परिणाम संकेत देते हैं कि Hα line कोर लगातार सीए ।।-8662 ए लाइन व्युत्क्रमों की तुलना में कमजोर चुंबकीय क्षेत्र की ताकत का अनुमान लगाता है। यह सुझाव देते हुये कि कि Hα line, सीए ।।-आईआर ट्रिपलेट की तुलना में उच्च वायुमंडलीय परतों का नमूना लेती है। इस अध्ययन में चुंबकीय क्षेत्रों के मूल्य को फोटोस्फेयर में 2000 जी और क्रोमोस्फेयर में 500 जी पाया गया। स्थानीय हीटिंग अथवा तापमान बढ़ाने को प्रदर्शित करने वाले क्षेत्रों में पूर्ण हाइड्रोजन-अल्फा लाइन क्रोमोस्फेरिक चुंबकीय क्षेत्र के प्रति संवेदनशील हो गई। अध्ययन क्रोमोस्फेरिक डायग्नोस्टिक टूल के तौर पर हाइड्रोजन-अल्फा लाइन की प्रभावशीलता पर प्रकाश डालता है, विशेषतौर से जब अन्य स्पेक्ट्राल रेखायें जैसे कि Calcium ।। 8542 ए, सौर मंडल की गहरी परतों की जांच करता है।

अध्ययन के प्रधान अन्वेषक डॉ. के. नागराजू ने कहा, ‘‘क्रोमोस्फेयर में जटिल चुंबकीय क्षेत्रों के विभिन्न स्तरों को समझने के लिए बहुरेखीय दृष्टिकोण बहुत महत्वपूर्ण है।’’ अध्ययन के सह-लेखक डॉ. जयंत जोशी ने कहा ‘‘अध्ययन बेहतर स्थानिक और वर्णक्रमीय संकल्प के साथ उन्नत दूरबीनों का उपयोग करके Hα line के आगे स्पेक्ट्रोपोलरिमेट्रिक अवलोकन की आवश्यकता को रेखांकित करता है। डेनियल के. इनौये सोलर टेलीस्कोप (डीकेआईएसटी), आगामी यूरोपीय सोलर टेलीस्कोप (ईएसटी), और नेशनल लार्ज सोलर टेलीस्कोप (एनएलएसटी) जैसे टेलीस्कोप क्रोमोस्फेरिक चुंबकीय क्षेत्रों के स्तरीकरण में गहरी अंतर्दृष्टि प्रदान करने की बड़ी क्षमता रखते हैं।

दि नेशनल लार्ज सोलर टेलीस्कोप एक प्रस्तावित भूमि-आधारित 2-मीटर क्लास आप्टिकल और निकट अवरक्त (आईआर) अवलोकन सुविधा है। यह भारत में लद्दाख के मेराक गांव में बनाई जानी प्रस्तावित है। इसमें बेंगलुरू, भारत की टीम में आईआईए में पीएचडी छात्र, श्री हर्ष माथुर, आईआईए से डॉ. के नागराजू और आईआईए से ही डॉ. जयंत जोशी शामिल हैं। अमेरिकी टीम में लैबोरेटरी फॉर एटमोस्फेरिक एण्ड स्पेश फिजिक्श, बोल्डर से डॉ. राहुल यादव इसमें शामिल हैं। यह शोध सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र की अधिक विस्तृत और सूक्ष्म समझ पाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। यह सौर चुंबकीय घटनाओं की जटिलताओं को अधिक स्पष्ट ढंग से समझने में भविष्य के अध्ययनों और अवलोकनों का मार्ग प्रशस्त करता है।

अधिक जानकारी के लिए कृपया हर्ष माथुर से harsh.mathur@iiap.res.in. संपर्क करें।

इसका प्रकाशन पूर्व लेख पढ़ने के लिये उपलब्ध है : https://arxiv.org/pdf/2406.02083.

इस लेख की डीओआई है: https://doi.org/10.3847/1538-4357/ad54ba

PIB

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